000 | 01115nam a22001937a 4500 | ||
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003 | OSt | ||
005 | 20250424173443.0 | ||
008 | 240920b |||||||| |||| 00| 0 eng d | ||
020 | _a9789350002346 | ||
040 | _c. | ||
082 |
_a891.433 _bPRE |
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100 | _aप्रेमचंद / Premachand | ||
245 |
_aगोदान / Godan / _cby प्रेमचंद / Premachand |
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260 |
_aनई दिल्ली: _bलेखाश्री प्रकाशन, _c2018 |
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300 |
_a371p.; _c21cm. |
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520 | _aगोदान को प्रेमचंद का कालजयी उपन्यास माना जाता है। यह अपने समय का आईना है। इसी कृषक जीवन की विडम्बनाओ का मार्मिक चित्रण मिलता है। उस समय की शायद ही कोई समस्या हो जिसका गहरा चित्रण गोदान में नहीं मिलता।---provided by publisher | ||
650 | _aHindi Fiction | ||
942 |
_2ddc _cBK |
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999 |
_c2030 _d2030 |